ट्रेनों की गड़गड़ाहट के बीच, स्टेशन के पिछले हिस्से की तरफ रेलवे ट्रैक पर बैठी सपना की आंखों से झर-झर आंसू बह रहे थे. उधर से निकलने वाले लोग बार-बार उसे रेलवे ट्रैक से हटने की बात कहकर आगे बढ़े जा रहे थे पर किसी ने भी उसके बहते हुए आंसू को देखकर उसकी परेशानी न जाननी चाही. सूरज भी दिनभर तपने के बाद अपनी मंदम रोशनी के साथ छिपने को तैयार था. शाम का सन्नाटा भी अपने पैर पसारने में जुटा था. सपना वही आखिरी पटरियों बैठी आती हुई ट्रेन की कंपन को महसूस कर रही थी. अपनों और अपने जीवन का मोह त्याग कर वह वहीं बैठी रही. जैसे-जैसे ट्रेन करीब आती गई वह अपने आंसुओं को पोछकर और निश्चिंता के साथ पटरियों पर लेट गई जैसे वह अपने सारे दुखों को एक झटके से खत्म कर देना चाहती हो. हार्न के तेज आवाज में वो अपनी चीखों को दबा देना चाहती थी कि तभी किसी ने उसका हाथ पकड़कर उसे तेजी से खींचा और झट से कुछ ही सेकंड में हॉर्न बजाती हुई ट्रेन पटरियों से गुजर गई. सपना लाख कोशिशों के बावजूद भी अपनी कलाई उस मजबूत पकड़ से छुड़ा न पाई.
"यह क्या पागलपन है अगर तुम्हें अभी न खीचता तो अभी तुम्हारे टुकड़े यहां बिखरे पड़े होते." शोर सुनकर तब तक आसपास के लोग भी जमा हो गए "कौन है यह लड़की सत्यम भाई" पीछे से एक आवाज आई.
"मुझे क्या पता कौन है.... इधर से गुजर रहा था तो ये मैडम यहां पटरियों पर आराम फरमा रही थी, इनको इधर न खींचता तो अभी यहां एंबुलेंस में इनके टुकड़े इकट्ठे किए जा रहे होते." सपना पर हंसता हुआ सत्यम बोला.
"अरे सत्यम बेटा इस लड़की को पुलिस के हवाले कर दो....पता नहीं कौन है किस मुसीबत में है. जब एक बार यह आत्महत्या करने की कोशिश की है तो दोबारा भी कर सकती है." भीड़ में से निकल कर एक बुजुर्ग ने अपनी राय प्रस्तुत की.
"अरे सपना.... तुम यहां क्या कर रही हो" तभी सब की नजर सत्यम की बहन पारुल की तरफ घूम गई.
"तुम जानती हो इसे" सत्यम थोड़ा इत्मीनान होकर बोला. "हां भैया यह मेरी कॉलेज में पढ़ती है. पर तुम यहां कैसे सपना.... तुम्हारा घर तो यहां से दूर है." हैरान होते हुए पारुल उससे प्रश्न करने लगी. सपना को यकीन नहीं था कि यहां पर उसे कोई जानने वाला भी मिलेगा. इतनी देर में वह दोबारा आत्महत्या करने के बारे में सोच चुकी थी पर इतनी भीड़-भाड़ में यह संभव नहीं था अतः वह चुपचाप खड़ी रही. सत्यम ने पारुल को सपना के आत्महत्या करने के बारे में बताया. सब पता चलने के बाद पारुल उसे अकेला छोड़ने को बिल्कुल भी तैयार न थी. वह उसे लेकर पास बने अपने घर रेलवे क्वार्टर की तरफ चल दी. सत्यम भी उनके पीछे-पीछे आ गया और भीड़ भी खुसुर-फुसुर करते हुए छटने लगी. पारुल ने इस वक्त सपना से कोई बात नहीं की और न ही अपने घर में कुछ भी बताया साथ ही सत्यम को भी कुछ ना बताने की हिदायत दी. पारुल के पापा रेलवे में नौकरी करते है जिस कारण वो सपरिवार रेलवे क्वार्टर में रहते हैं. पारुल सपना के ही शहर में हॉस्टल में रहकर पढ़ाई की है. और बड़ा भाई सत्यम भी उसी शहर में कम्प्यूटर इंस्टीट्यूट चलाता है.
सपना ने कभी नहीं सोचा था कि यूं अचानक उसका सामना उसकी सहेली से हो जाएगा. पारुल सपना से पूछना चाह रही थी कि आखिर उसने इतना बड़ा कदम क्यों उठाया.... पर सपना ने तो जैसे कुछ ना बोलने की कसम खा रखी थी. सपना की सूनी-निरीह आंखों को देख कर कोई भी एक पल के लिए घबरा सकता था कि आखिर इतनी खूबसूरत लड़की को क्या दुख हो सकता है. खूबसूरत तो वो इस कदर थी कि कोई भी उसका चेहरा अपलक निहार सकता है. सफेद संगमरमर जैसा रंग और ऊपर से नैन-नक्श भी कमाल के बने हुए. गुलाब की मखमली पंखुड़ियों जैसे होठ, लंबे खूबसूरत बाल....कुल मिलाकर एक अप्सरा सी थी वो. दूसरी तरफ मोहल्ले में भी सपना को लेकर चर्चाएं होने लगी क्योंकि उसी जगह पर यह हादसा हुआ था और उड़ते-उड़ते ये खबर पारुल के मां-बाप तक भी पहुँच गयी. उनसे भी कोई बात छुपी न रह सकी.
पारुल की माँ भी ये सब जानकर परेशान हो गयी और उसकी माँ की तरह उसका दुःख जानना चाहा "सपना बेटा हमें नहीं पता कि तुमने अपनी जिंदगी खत्म करने का इतना बड़ा कदम क्यों उठाया. आज ईश्वर ने तुम्हें बचा कर एक मौका और दिया है अगर तुम चाहो तो अपना दर्द हमसे बांट सकती हो.......शायद हम तुम्हारी कुछ मदद कर सकें. तुम्हारे मां-बाप परेशान होंगे. अपने घर का नंबर दे दो हम उन्हें यहां बुलाते हैं वो तुम्हें ले जायेंगे." पारुल की मां अपना हाथ सपना के सर पर रखते हुए बोली.
"आप मुझे जाने दीजिए ऑन्टी....मैं अकेली ही ठीक हूं. कोई नहीं है मेरा. अपनी जिंदगी से कोई लगाव नहीं है मुझे. अब मुझ में वह शक्ति नहीं बची कि मैं कुछ और भी सह सकूं." कहते हुए रो पड़ी सपना.
"ठीक है बेटा, तुम मत बताओ कि तुम्हें क्या परेशानी है, पर कम से कम अपने घर का पता बता दो, मैं सत्यम को वहाँ भेज देती हूं." थोड़ा परेशान होते हुए पारुल की मां बोली.
"मेरे घरवाले कुछ नहीं जानते हैं उन्हें लग रहा है कि मैं नौकरी के सिलसिले में आई हूं. अगर मुझे कुछ हो भी गया तो उन्हें कुछ पता ना चलता. कहकर सपना कहीं शून्य में ताकती रही. पर पारुल की मां और परेशान हो गयी वह एक समझदार औरत थी. आस-पड़ोस के बहकावे में आकर उन्होंने कोई भी गलत कदम नहीं उठाया.... आखिर वह भी एक मां है. वह समझ रही थी कि सपना के मां-बाप पर क्या गुजर रही होगी. सबके बहुत निवेदन करने पर पारुल ने रात थोड़ा बहुत खा लिया पर उसका पेट तो जैसे तकलीफों से भरा पड़ा था. उसकी भूख मर चुकी थी.
रात के वक्त पारुल सपना को लेकर छत पर गई और उससे एक बार फिर उसकी परेशानी जानी चाहिए. सपना ने पारुल की मां को तो कुछ भी ना कहा पर अपनी सहेली के पूछने पर वह रोक न पाई खुद को.......पहले तो वह फूट-फूट कर रोती रही....
क्रमशः.......